A poem of Umesh chandra srivastava
अबकी होली में कोई रंगो की बरसात न हुई,
अबकी होली में कोई मधुर सी सौगात न हुई।
वह दिन और थे जब रंग में रंगे हम रहते ,
गुझिया, पापड़ 'औ' समोसे को तल-तल रखते।
अब हम हैं और हमारे संघी साथी ,
वक्त का दौर है अब कोई नहीं बाराती।
अब तो आएंगे बहुत सधे हुए मेहमाँ भी ,
चाय वह फीकी और नमकीन थोड़ा लेंगे ही।
बहुत उम्मीद की होली है और बोली भी ,
अबकी होली में कोई सावन सी बरसात न हुई।
अबकी होली में कोई रंगो की बरसात न हुई,
अबकी होली में कोई मधुर सी सौगात न हुई।
वह दिन और थे जब रंग में रंगे हम रहते ,
गुझिया, पापड़ 'औ' समोसे को तल-तल रखते।
अब हम हैं और हमारे संघी साथी ,
वक्त का दौर है अब कोई नहीं बाराती।
अब तो आएंगे बहुत सधे हुए मेहमाँ भी ,
चाय वह फीकी और नमकीन थोड़ा लेंगे ही।
बहुत उम्मीद की होली है और बोली भी ,
अबकी होली में कोई सावन सी बरसात न हुई।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava