month vise

Wednesday, March 20, 2019

होली

A poem of Umesh chandra srivastava



होली रंग अबीर का ,
प्रेम मिलान त्यौहार।
आपस में हम बैठ के ,
बाटें यह व्यवहार।

होली के रंग में रंगे ,
सड़क गली मैदान।
सब में दिखे एक रंग,
मस्ती में हुड़दंग ।

प्रेमी के संग प्रेम का ,
संघी के संग दंग।
होली में जब हम मिलें ,
देखो फिर तो भंग।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...