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Saturday, March 23, 2019

अबकी होली में कोई रंगो की बरसात न हुई

A poem of Umesh chandra srivastava



अबकी होली में कोई रंगो की  बरसात न हुई,
अबकी होली में कोई मधुर सी सौगात न हुई।

वह दिन और थे जब रंग में रंगे हम रहते ,
गुझिया, पापड़ 'औ' समोसे को तल-तल रखते।

अब हम हैं और हमारे संघी साथी ,
वक्त का दौर है अब कोई नहीं बाराती।

अब तो आएंगे बहुत सधे हुए मेहमाँ भी ,
चाय वह फीकी और नमकीन थोड़ा लेंगे ही।

बहुत उम्मीद की होली है और बोली भी ,
अबकी होली में कोई सावन सी बरसात न हुई।  




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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