Umesh srivastava's poem
सुखद चंदिनी की मगन रात थी वह,
छिटकते संवरते बदल हो रहे थे।
थी मध्यम सी पीड़ा- मगर मन में हर्षित,
निहारे पड़ी थी वह निज लाल को बस।
वह कहती चमकता सा जीवन हुआ है,
चमन में कमलदल खिला है खिला है।
सुखद जोग है यह ललन को लिए मैं,
हूँ हर्षित, मैं पुलकित मगन हो रही हूँ।
यही कल खिलायेगा जीवन की नदियां,
धरा पर बनाएगा अपना स्वयं पथ।
यही मैं दुआ दे रही हूँ तुम जाओ,
चमन में हसो अपना बादल बनाओ।
सुखद चंदिनी की मगन रात थी वह,
छिटकते संवरते बदल हो रहे थे।
थी मध्यम सी पीड़ा- मगर मन में हर्षित,
निहारे पड़ी थी वह निज लाल को बस।
वह कहती चमकता सा जीवन हुआ है,
चमन में कमलदल खिला है खिला है।
सुखद जोग है यह ललन को लिए मैं,
हूँ हर्षित, मैं पुलकित मगन हो रही हूँ।
यही कल खिलायेगा जीवन की नदियां,
धरा पर बनाएगा अपना स्वयं पथ।
यही मैं दुआ दे रही हूँ तुम जाओ,
चमन में हसो अपना बादल बनाओ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
Umesh srivastava's poem
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