बेटियां हैं भवन ,बेटियां हैं सवन ,
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
बेटियों से सजा है यह पूरा वतन।
बेटियों के ही बल पे चमन फूल है ,
बेटियों से मगन है ये पूरा गगन।
धूल पर चल रहीं ,शूल में पल रहीं ,
इनको धूपों में पाला गया ये पाली।
इनपे बंदिश अनेकों पिता-मात की ,
फिर भी देखो चमन में खिली ही खिली।
अब रुदन का ज़माना नहीं रहा गया ,
बेटे-बेटी में फर्क नहीं रह गया।
बेटा भी है पढ़े ,बेटियां पढ़ रहीं ,
देखो अब तो सदा बेटियां बढ़ा रहीं।
poem by Umesh chandra srivastava
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