गीत गाता हूँ ,तुम मुस्कराती रहो ,
भाई-बहनों का प्रेम, बढाती रहो।
जो तुम्हारी हुईं दुहिता -तुम तो ऐ ,
उनको आशीर्वचन से लुभाती रहो।
कौन कब है यहां ,कौन जाता कहाँ ,
सुख के सागर में गोता लगाती रहो।
वो मिले तुमको-उनको ही चंदा समझ ,
सुख की सुन्दर बयारें चलाती रहो।
आज वो है बेला-तुमको कहता हूँ मैं ,
ज़िंदगी में अमर प्रेम गाती रहो।
सुख की बगिया खिले-प्रेम-ही-प्रेम हो ,
प्रेम के ही चमन में नहाती रहो।
बाल बच्चे , जो नाती 'औ' पोता हुए ,
तेरे आँचल में सारे पगे हैं , बढ़े।
जमाताओं को खुश कर-सदा प्रेम दो ,
सारे मायके वालों को मिलाती रहो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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