poem by Umesh chandra srivastava
बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
धरा का अँधेरा सभी मिट ही जाए।
इन्हें भी हो मालूम ये देखें ज़रा सा,
ये राजाओं का भी करम देख लें कुछ।
ये ए. सी. में बैठे बहुत बात करते ,
उन्हें खूब सराहें , मगर वहं न भी जाएँ।
कहो इनसे वह भी संशोधन कराएं ,
नियम यह बनाएं-वो सरहद पे जाएँ।
लिखो बात यह भी वो जनता जनार्दन से-
कहें जो करें अपनी निष्ठां दिखाएँ।
नहीं मुख से भाषण सुनाएँ-सुनाएँ ,
अगर हों वतन के लिए -बात मानें।
वो सरहद पे जाएँ ,वो सरहद पे जाएँ।
उमेश चद्र श्रीवास्तव-
poem by Umesh chandra srivastava
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