poem by Umesh chandra srivastava
बड़े कवि अगर हो ,लिखो बात ऐसी ,
धरा का अँधेरा सभी मिट ही जाए।
वो फूलों की बातें , निगाहों की शोखी ,
मगन हो सजन के लिए लिख रहे हो।
तो छोड़ो बताऊं लिखो तुम वतन पे ,
जो सैनिक खड़े हैं वहां सीना तने।
मग्न होके उनका ही धीरज बढ़ाओ ,
वतन के लिए जो ,वतन के हैं प्रेमी। (क्रमशः कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment