poem by Umesh chandra srivastava
(१)
तुम्हारा काव्य सुन्दर है ,सभी सम्भाव्य सुन्दर है ,
मनुजता के चितेरक तुम ,तुम्हारा राग सुन्दर है।
कोई पढ़ ले सहजता से , तुम्हारी लेखनी सुन्दर ,
महाकवि तुम उपासक हो , तेरा अनुराग सुन्दर है।
(२)
हरण जब सीय का होता , तभी सब राम रोते हैं।
हरण जब चीर का होता ,तभी घनश्याम होते हैं।
कहो फिर क्या मिलेंगे ,राम 'औ' घनश्याम दोनों अब ,
मिलेंगे धूर्त , भोगी लोग ,अब अविराम रोते हैं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment