poem by Umesh chandra srivastava
मुरलीधर को यह राखी बहन बांधती ,
अब हमारी तुम रक्षा करो भाई तुम।
हंस के बोले कन्हैया-क्या चहिये तुम्हें ?
हंस पड़ी तब सुभद्रा मगन हो गयी।
भाई से बस बहन की ये चाहत सुनो ,
रक्षा बंधन अमर हो बहन-भाई का।
युग-युगों से यह बंधन बढ़े रात-दिन ,
भाई खुश-खुश रहे बहन भी हो मगन।
ये लगन-ये दुलारा सा प्रेम प्रहर ,
हर समय गूंजे बहना का दिल हो सघन।
भाई-बहनों का त्यौहार फलता रहे ,
प्रेम की गूँज से ये जहां हो मगन।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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