A poem of Umesh chandra srivastava
क्या तुम भी भूमी जीवों सी ,
या कोई हो जंतु की भांति?
जंगल , जल और रुधिर कहाँ है ,
कहाँ तुम्हारे रीति-रिवाज?
मौन खड़ा नित तुम्हें निहारूं ,
सुन्दर , रम्य , सुदूर-मधुर?
जहां-जहां भी जाऊं जब-जब ,
तब-तब तुम सुन्दर लगती?
मौन सम्भाषण मौनमयी है ,
मौनमयी प्रतिवेदन है?
पल-पल , छिन-छिन भाव तुम्हारे ,
तुम कितनी संवेदन हो?
मन भीतर यह प्रश्न उमड़ता ,
कैसे , कौन , कहाँ से तुम?
वसुधा को पीयूष पिलाती ,
कौन वातायन आती तुम? (धारावाहिक आगे कल )
क्या तुम भी भूमी जीवों सी ,
या कोई हो जंतु की भांति?
जंगल , जल और रुधिर कहाँ है ,
कहाँ तुम्हारे रीति-रिवाज?
मौन खड़ा नित तुम्हें निहारूं ,
सुन्दर , रम्य , सुदूर-मधुर?
जहां-जहां भी जाऊं जब-जब ,
तब-तब तुम सुन्दर लगती?
मौन सम्भाषण मौनमयी है ,
मौनमयी प्रतिवेदन है?
पल-पल , छिन-छिन भाव तुम्हारे ,
तुम कितनी संवेदन हो?
मन भीतर यह प्रश्न उमड़ता ,
कैसे , कौन , कहाँ से तुम?
वसुधा को पीयूष पिलाती ,
कौन वातायन आती तुम? (धारावाहिक आगे कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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