A poem of Umesh chandra srivastava
नेताओं को नेता से लड़ाने के लिए ,
क्या यह चुनाव इसीलिए है ?
भद्दी-भद्दी बातें-आपस में बोलते ,
जनता मूर्ख बनाने के लिए।
रोज-रोज धरम और जाति-पात को,
कहते और सुनाते हैं जताने के लिए।
हम आपके-आप सिर्फ मेरे हैं ,
ऐसी-ऐसी बातों से बहलाने के लिए।
जो कभी एक दूसरे के विरोधी
वोट खातिर एक जमात हो गये।
दूजे सत्य आड़ में खेल कर रहे ,
केवल सिर्फ वोट हथियाने के लिए।
नियम और क़ानून का क्या है फायदा ,
ये सारे कायदे हमारे लिए हैं।
नेताओं का हुक्म क़ानून समझ लो ,
सारे दांव-पेंच फंसाने के लिए।
आया महापर्व वोट डाल लो ,
नेताओं का हुक्म बजाने के लिए।
पांच साल बाद ये फिर आएंगे ,
झूठी मूठी बातों को दोहराने के लिए।
नेताओं को नेता से लड़ाने के लिए ,
क्या यह चुनाव इसीलिए है ?
भद्दी-भद्दी बातें-आपस में बोलते ,
जनता मूर्ख बनाने के लिए।
रोज-रोज धरम और जाति-पात को,
कहते और सुनाते हैं जताने के लिए।
हम आपके-आप सिर्फ मेरे हैं ,
ऐसी-ऐसी बातों से बहलाने के लिए।
जो कभी एक दूसरे के विरोधी
वोट खातिर एक जमात हो गये।
दूजे सत्य आड़ में खेल कर रहे ,
केवल सिर्फ वोट हथियाने के लिए।
नियम और क़ानून का क्या है फायदा ,
ये सारे कायदे हमारे लिए हैं।
नेताओं का हुक्म क़ानून समझ लो ,
सारे दांव-पेंच फंसाने के लिए।
आया महापर्व वोट डाल लो ,
नेताओं का हुक्म बजाने के लिए।
पांच साल बाद ये फिर आएंगे ,
झूठी मूठी बातों को दोहराने के लिए।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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