A poem of Umesh chandra srivastava
माँ है चन्दन, माँ है पानी,
माँ ही व्रत त्यौहार है।
माँ है धरती, माँ है गंगा,
माँ से जग उद्धार है।
माँ के बिन है कौन बना नर,
माँ ही जीर्णोद्धार है।
माँ की बलैया सुख की साथी,
माँ ही तो पतवार है।
माँ का पद है सबसे ऊँचा ,
माँ का स्नेह अपार है।
माँ ही सारा मार्ग दिखाती ,
माँ ईश्वर, माँ सार है।
माँ से चलती जगत त्रिवेणी ,
माँ संगम, अभिसार है।
माँ की सम्पूर्णता में सब कुछ ,
माँ का नाम अपार है।
माँ है चन्दन, माँ है पानी,
माँ ही व्रत त्यौहार है।
माँ है धरती, माँ है गंगा,
माँ से जग उद्धार है।
माँ के बिन है कौन बना नर,
माँ ही जीर्णोद्धार है।
माँ की बलैया सुख की साथी,
माँ ही तो पतवार है।
माँ का पद है सबसे ऊँचा ,
माँ का स्नेह अपार है।
माँ ही सारा मार्ग दिखाती ,
माँ ईश्वर, माँ सार है।
माँ से चलती जगत त्रिवेणी ,
माँ संगम, अभिसार है।
माँ की सम्पूर्णता में सब कुछ ,
माँ का नाम अपार है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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