A poem of Umesh chandra srivastava
देखा उसको,
पंच सितारा महल,
निर्माण स्थल पर।
ईंटा ढोती,
बच्चे को पीछे,
पल्लू में लिटाये,
कर्मरत दृष्टि अपार।
माँ का धर्म निभाती,
मजदूरी करती,
दृष्टि-वृष्टि में हहराती,
बनी मनुजाधार।
कर्मणा मजदूरिन
सीढ़ी चढ़ती,
और उतरती।
बात-बात में,
फुस हंस देती।
देख रहे सब उसको एकटक,
पीछे लिटा बच्चा-
किलकारी भरता,
लात मरता,
हुंकारी भरता,
पर वह माँ,
अविरल उसको,
प्रेम, प्यार, पुचकार में तत्पर।
देखा उसको,
पंच सितारा महल,
निर्माण स्थल पर।
देखा उसको,
पंच सितारा महल,
निर्माण स्थल पर।
ईंटा ढोती,
बच्चे को पीछे,
पल्लू में लिटाये,
कर्मरत दृष्टि अपार।
माँ का धर्म निभाती,
मजदूरी करती,
दृष्टि-वृष्टि में हहराती,
बनी मनुजाधार।
कर्मणा मजदूरिन
सीढ़ी चढ़ती,
और उतरती।
बात-बात में,
फुस हंस देती।
देख रहे सब उसको एकटक,
पीछे लिटा बच्चा-
किलकारी भरता,
लात मरता,
हुंकारी भरता,
पर वह माँ,
अविरल उसको,
प्रेम, प्यार, पुचकार में तत्पर।
देखा उसको,
पंच सितारा महल,
निर्माण स्थल पर।
उमेश चद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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