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Wednesday, July 13, 2016

जितना वो चाहती


जितना वो चाहती है,
 उतना ही पर्व दीखता । 
जितना वो चाहती ,
उतना ही पल्लू गिरता । 
जितना वह चाहती ,
उतनी ही ऑंखें बोलती । 
जितना वह चाहती ,
उतना ही ओठ मौन । 
खिलखिलाते , मुस्कुराते -
चहरे के हाव-भाव ,
रीझाते-उतना ही ,
जितना वह चाहती । 
क्योंकि वह अब -
समझ चुकी  पुरुष की निगाहें ,
उसकी सत्ता और महत्ता । 
                                     -उमेश श्रीवास्तव 

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