चिट्ठियाँ पढ़ ले ओ
चितचोर |
दूर गगन से मंजुल
बातें ,
रिमझिम सावन की बरसातें ,
नयन भिगो के कह जाती
हैं
सुदबुध मे चन्दन सा
घोल |
जीवन मिला निभा लो
अपना ,
सुंदर सपना मोहक रोल
|
सांची जग की सांची
बातें ,
सीधी सादी नहीं हैं
रातें ,
बादल उमड़ –उमड़ कर
चलते ,
मन मे रसना उमड़ रही
है ,
दिवस पहरुए लोच मारते
ठगनी काला मचाती शोर
|
आवा –गमन यहाँ लगता
है ,
मेले मे जन मन खोता
है,
सुध बुध का अनमोल
जतन कर ,
जीवन के पथ पर आगे
बढ़ ,
दिशा , दशा की समतल बातें
,
मंथन कर आएगी भोर
|
-उमेश श्रीवास्तव
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