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Friday, July 15, 2016

घर

उस  बात बतऊ क्या?
जिस घर में आधी दुनिया हो। 
सब रंगत फीका ही जनो,
जिस घर में रुमझूम भी न हो। 
सुबह "औ" शाम सभी आते,
बाते करते, मुस्काते हैं। 
तनहा से उस घर में केवल,
बस पुरुष-पुरुष ही रहतें हैं। 
उस घर में आने से नारी,
घबराती आवर लजाती है। 
पुरुष वर्चस्व के ही कारण,
नारी भी तो शर्माती है। 
घर घर वीरान सा लगता है,
बिन घरनी भूतों का डेरा। 
लतगा-लगता और खूब लागता,
तुम्ही बताओ बंधू जी। 
यह बात सत्य तो है केवल,
धर्मों का नाता और रिश्ता। 
सब घर घरनी से बनता है,
अब क्या सीये, अब क्या जिए। 
अब तो केवा मन भरमाता,
कुछ भी तो नहीं सुहाता है। 
घर बनता गृहणी से केवल,
सब राग रंग तब सजता है। 
                                      -उमेश  श्रीवास्तव 

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