अपनी बातें भूल बताओ, क्या-क्या तुम करने आये,
देश से नाता, देश चलने, देश को तुम छलने आये।
गजब की बातें, गजब के सपनें, रूप बना के आये तुम,
डांडे-डांडे भाग रहे तुम, सड़को को अब छोड़ चलो।
नाहक फस गए लोग-बाग़ सब, तेरे-तेरे चक्कर में,
तुम तो धूप बने बरसाती, रह-रह तपिश बढ़ाते।
क्या ऐसे ही देश चलेगा, क्या ऐसे ही होगी प्रगति,
स्वप्न दिखाना कला तुम्हारी, हकीकत से दूर रहे।
ऐसे में क्या होगा तेरा, छली घमंडी तो तुम हो,
भरमाने की कला तुम्हारी, कब तक तुम दंभी होंगे।
देश हमारा 'सून चीरैया', माटी में अलमोल रतन,
पहचानो तुम देश को अपने, देश प्रगति पर ले आओ।
-उमेश श्रीवास्तव
देश से नाता, देश चलने, देश को तुम छलने आये।
गजब की बातें, गजब के सपनें, रूप बना के आये तुम,
डांडे-डांडे भाग रहे तुम, सड़को को अब छोड़ चलो।
नाहक फस गए लोग-बाग़ सब, तेरे-तेरे चक्कर में,
तुम तो धूप बने बरसाती, रह-रह तपिश बढ़ाते।
क्या ऐसे ही देश चलेगा, क्या ऐसे ही होगी प्रगति,
स्वप्न दिखाना कला तुम्हारी, हकीकत से दूर रहे।
ऐसे में क्या होगा तेरा, छली घमंडी तो तुम हो,
भरमाने की कला तुम्हारी, कब तक तुम दंभी होंगे।
देश हमारा 'सून चीरैया', माटी में अलमोल रतन,
पहचानो तुम देश को अपने, देश प्रगति पर ले आओ।
-उमेश श्रीवास्तव
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