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Tuesday, May 21, 2019

वह कुत्ता

A poem of Umesh chandra srivastava

वह कुत्ता -दुआरे
सुबह आके बैठा।
कोई टुकड़ा मुहं में ,
दबाये वह ऐठा।
करम बेल पर,
वह सुबह से ही लगता।
न कहता , न सुनता ,
करम वह है करता।
सुबह का अपिरिचित ,
अगर राहगीर है,
तो कुत्ता तो केवल ,
भौकता ही है रहता।
बताता वह अनजान ,
काहे को आया।
अनिष्टा का कोई,
बनेगा क्या साया ?
यह कुत्ता समझता ,
बहुत कुछ ही बेहतर।
हम मानव नहीं-
हो भी पाते हैं तर-तर।
यह कुत्ता सिखाता ,
बहुत सी ही बातें ,
कसम से वफादारी की सब सौगातें।
बताओ जगत में ,
कोई भी  ऐसा।
जो कुत्ते से ज्यादा वफादार हो ले।






उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Monday, May 13, 2019

उस दिन छत के ,उपर देखा

A poem of Umesh chandra srivastava



उस दिन छत के,
उपर देखा।
मस्त पवन के,
झोकों सी तुम।
गेसू बिखराए,
सुन्दर ललाट पर,
कुमकुम,
गुमसुम,
आसमान की ओर,
टकटकी लगाये,
देख रही थी।

उस दिन आंगन में तुम,
आंगन बुहार रही थी।
कोमल सी मीठी बोली में,
कोई सुर संलाप लगाकर,
 सबको मुग्ध कर रही थी।

उस दिन घर में,
कोहराम मचा था।
भीड़ लगी थी।
घर-बाहर ,
आंगन दुआरे,
लोग कह रहे,
इतनी मृदुभाषी थी,
कुशल वयाव्हारी थी।
न जाने-वह कैसे,
काल के गाल में,
समा  चुकी थी।
लोग बोलते-
क्या थी-अभी उमर ही उसकी ?
खेलने-खाने के दिन,
वह-ऐसे
यूँ ही अचानक ,
चली गयी।
कोई कहता,
अभी तो वह ,
एकदम नयी नवेली,
दुल्हन बन आई थी।
साल बरस,
अभी पांच ही बीते,
कि वह चली गयी।
ना जाने किस,
भय आतंक की,
शिकार हुई।
या घर वालों के,
कोपभाजन में,
हलाल हुई।
पुलिस भी सक्रिय रही,
वहां पर।
न जाने क्यों ?
उसका ललाट मुख,
अभी दमक रहा था।
आखें-फटी,
पथरीली-कुछ,
बयाँ कर रही।
इसी बात पर,
शंका के बादल मंडराए,
उम्र शेष थी,
फिर भी गयी,
या वह भेजी गयी वहां !
जहां से कोई नहीं लौटा।
घर वाले सब,
शक के घेरे में,
 पूछ ताछ थी जारी,
वह थी खामोश,
बयां की लाश बनी,
पृथ्वी के आँचल में,
पड़ी-गली,
एकदम चिर निद्रा में, 
उस दिन छत के,
उपर देखा।
मस्त पवन के,
झोकों सी तुम।





उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Sunday, May 12, 2019

देखा उसको

A poem of Umesh chandra srivastava
देखा उसको,
पंच सितारा महल,
निर्माण स्थल पर।
ईंटा ढोती,
बच्चे को पीछे,
पल्लू में लिटाये,
कर्मरत दृष्टि अपार।
माँ का धर्म निभाती,
मजदूरी करती,
दृष्टि-वृष्टि में हहराती,
बनी मनुजाधार।

कर्मणा मजदूरिन
सीढ़ी चढ़ती,
और उतरती।
बात-बात में,
फुस हंस देती।
देख रहे सब उसको एकटक,
पीछे लिटा बच्चा-
किलकारी भरता,
लात मरता,
हुंकारी भरता,
पर वह माँ,
अविरल उसको,
प्रेम, प्यार, पुचकार में तत्पर।
                        देखा उसको,
                        पंच सितारा महल,
                        निर्माण स्थल पर।



उमेश चद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava

Saturday, May 11, 2019

माँ है चन्दन, माँ है पानी

A poem of Umesh chandra srivastava


माँ है चन्दन, माँ है पानी,
माँ ही व्रत त्यौहार है। 
माँ है धरती, माँ है गंगा,
माँ से जग उद्धार है। 
माँ के बिन  है कौन बना नर,
माँ ही जीर्णोद्धार है। 
माँ की बलैया सुख की साथी,
माँ ही तो पतवार है। 
माँ का पद है सबसे ऊँचा ,
माँ का स्नेह अपार है। 
माँ ही सारा मार्ग दिखाती ,
माँ ईश्वर, माँ सार है। 
माँ से चलती जगत त्रिवेणी ,
माँ संगम, अभिसार है। 
माँ की सम्पूर्णता में सब कुछ ,
माँ का नाम अपार है। 

        



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Friday, May 10, 2019

नेताओं को नेता से लड़ाने के लिए

A poem of Umesh chandra srivastava

नेताओं को नेता से लड़ाने के लिए ,
क्या यह चुनाव इसीलिए है ?
भद्दी-भद्दी बातें-आपस में बोलते ,
जनता  मूर्ख बनाने के लिए।

रोज-रोज धरम और  जाति-पात को,
कहते और सुनाते हैं जताने के लिए।
हम आपके-आप सिर्फ मेरे हैं ,
ऐसी-ऐसी बातों से बहलाने के लिए। 

जो कभी एक दूसरे के विरोधी 
वोट खातिर एक जमात हो गये। 
दूजे सत्य आड़ में खेल कर रहे ,
केवल सिर्फ वोट हथियाने के लिए। 

नियम और क़ानून का क्या है फायदा ,
ये सारे  कायदे हमारे लिए हैं। 
नेताओं का हुक्म क़ानून समझ लो ,
सारे दांव-पेंच फंसाने के लिए। 

आया महापर्व वोट डाल लो ,
नेताओं का हुक्म बजाने के लिए। 
पांच साल बाद ये फिर आएंगे ,
झूठी मूठी बातों को दोहराने के लिए।  




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Saturday, May 4, 2019

यहाँ सब हैं योद्धा, सभी प्रेम योद्धा,

A poem of Umesh chandra srivastava .

यहाँ सब हैं योद्धा, सभी प्रेम योद्धा,
नहीं है जगत में कोई भी विध्वंसक। 
सभी जग के प्राणी अहिंसक-अहिंसक,
इन्हें प्यार दे दो ये प्रेम पुजारी।
करो और दिखाओ, ये करना बताना ,
जगत की ये बाते सभी को सुनाना।
      वही रोज आना-वही रोज जाना ,
      वही रोज बातों का कहना सुनाना।  




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava . 

Thursday, May 2, 2019

माधो ! ३

A poem of Umesh chandra srivastava 




-उमेश चंद्र श्रीवास्तव 


A poem of Umesh chandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...