छंद ,अलंकृत सृष्टि ,काव्य हो
,
यह उतना आसान नहीं ,
भाषा सुदृण ,भाव सुंदर हो ,
काव्योचित यह मर्म सही |
रोज भाव का आना-जाना ,
अंतर मे स्वाभाविक है |
उसे तूलिकामय करना ही,
कवि धर्म का कारक है |
यद्यपि काव्य शास्त्रियों ने –
कविताहित विधान गढ़ा
,
पर विधान सापेक्ष लिखना ,
है उतना आसान नहीं |
है उतना आसान नहीं |
छोड़ो प्रतिमानों की बातें ,
कवि को मानव मूल्य –
विहित भावों को ,
भव मंगल हित गढ़ने दो|
(रचना
आज सुबह आठ बजे लिखी गयी )
-उमेश श्रीवास्तव
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