A poem of Umesh chandra srivastava
कविता कितनी मनभावन है ,
पैदाइश से ही सावन है।
कितनी प्यारी लगती कविता ,
बोल रही , बतियाती कविता।
छोटे नन्हें हाँथ-पांव से -
चलती 'औ' खुजलाती कविता।
वह देखो हरियाली कविता ,
मोहपाश में बंधती कविता।
सरे बंधन तोड़ रही है ,
कैसी हंसती-गाती कविता।
बड़ी सयानी लगती कविता ,
अब कविता तो बड़ी हो गयी ,
इसीलिए खुद खड़ी हो गयी।
पत्थर तोड़े बीच सड़क पर ,
गलियारे में डोले कविता।
मन भावन यह पावन कविता ,
दो पर्वत का सिरा बना कर ,
बीच नदी लहराती कविता।
कविता जीवन के ढलान पर ,
फिर भी यह मुस्काती कविता।(आगे फिर कभी )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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