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Monday, April 9, 2018

रमजानिया

A poem of Umesh chandra srivastava

रमजानिया ,
काहे गई रहे !
जानत रहे -
ऊ बड़का लोग !
सब उनके साथ !
ऊ कुछ भी करिहैं ,
सब माफ़।
हम सब डोलत रहब ,
इन्साफ बदे।
कहूं ट्रक-वक के नीचे ,
दबाय जाब !
तब ऊ अइहैं ,
भोपा बजावै बदे !




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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