A poem of Umesh chandra srivastava
माई पोआरा भात
कई दिन रहब हम सब
माई कब तक
लतियावा जाब हम सब।
माई तुलसी बाबा भी
लिखेन "ढोल गंवार............"
माई हमन के
देखइ वाले
कब आपन दृष्टि बदलिहैं।
माई का सबै दिन ,
हम सब पोआरा भात रहब !
याकि दिन सुधरी भी ,
माई बताव न !
बताव !!
माई पोआरा भात
कई दिन रहब हम सब
माई कब तक
लतियावा जाब हम सब।
माई तुलसी बाबा भी
लिखेन "ढोल गंवार............"
माई हमन के
देखइ वाले
कब आपन दृष्टि बदलिहैं।
माई का सबै दिन ,
हम सब पोआरा भात रहब !
याकि दिन सुधरी भी ,
माई बताव न !
बताव !!
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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