A poem of Umesh chandra srivastava
क्या तुम सम्पन्न हुए ?
आजादी के बरसों बाद भी ,
लगता है-
कि तुम -अभी वहीं हो !
जहाँ जलालत ,
फजीहत ,
अपमान ,
दुर्व्यवहार ,
सब सहते हो।
लेकिन हर पांच वर्ष पर ,
उनके द्वारा ढगे जाते हो।
ये 'वो' वह नहीं हैं ,
जो पहले हुआ करते थे ,
कमसे-कम-'वो' तो ,
अपनों को
मानते ,
जानते ,
साथ देते थे ,
लेकिन ये 'वो' हैं ,
जो अपनों के ही नहीं हैं ,
तो तुम्हारे कैसे होंगे।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment