A poem of Umesh chandra srivastava
तुम्हारे जाने के बाद ,
मैं रोया ,
सोया नहीं ,जागा ।
तुम्हारी स्मृतियों ने ,
लगा दी बदन में आग ,
झुलसा ,
सूखा ,
लेकिन ,पुलक प्रेम की डोर को ,
कभी न छोड़ा।
तुम आज भी ,
मेरी स्मृतियों में ,
लुभाती हो , रिझाती हो ,
और हठखेलियां करती हो।
तुम्हारे जाने के बाद ,
मैं रोया ,
सोया नहीं ,जागा ।
तुम्हारी स्मृतियों ने ,
लगा दी बदन में आग ,
झुलसा ,
सूखा ,
लेकिन ,पुलक प्रेम की डोर को ,
कभी न छोड़ा।
तुम आज भी ,
मेरी स्मृतियों में ,
लुभाती हो , रिझाती हो ,
और हठखेलियां करती हो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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