A poem of Umesh chandra srivastava
मुहाने पर खड़ी ,
आँखों में स्वप्न ,
निज रक्षार्थ ,
आती-जाती ,
डोलती-बतियाती।
शाम ढले -
देर को जब ,
दफ्तर से निकलती।
भयातुर-फटाफट ,
घर पहुंचने की लय में,
जब घर पहुंचती तो ,
गहरी सांस लेती ,
निहारती ऊपर आकाश ,
तारों को देखती ,
फिर भीतर-भीतर कहती ,
आज सलामत आ गए।
कल -
कल देखा जाएगा!
मुहाने पर खड़ी ,
आँखों में स्वप्न ,
निज रक्षार्थ ,
आती-जाती ,
डोलती-बतियाती।
शाम ढले -
देर को जब ,
दफ्तर से निकलती।
भयातुर-फटाफट ,
घर पहुंचने की लय में,
जब घर पहुंचती तो ,
गहरी सांस लेती ,
निहारती ऊपर आकाश ,
तारों को देखती ,
फिर भीतर-भीतर कहती ,
आज सलामत आ गए।
कल -
कल देखा जाएगा!
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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