A poem of Umesh chandra srivastava
तू वसुधा अनमोल रतन है ,
देवों का तू गर्वित क्षण।
वार-वार सब कुछ तेरे में ,
तेरा स्वागत प्रतिपल प्रतिक्षण।
स्नेहिल , पुष्पित , हर्षित हो ,
नित्य तुम्हारा रूप निखरता।
अन्दर बाहर दोनों सुन्दर ,
क्या उपमा , सब उपमा विगलित।
रोज तुम्हारा दर्शन-वर्शन ,
खिली-खिली मोहक लगती।
पानी , आंधी , तूफां सहकर ,
सुखद सलोनी फिर भी लगती।
नारी रूप बड़ा मोहक है ,
नर सब देख रसिक बस होते।
टक-टक देखें , नख-सिख तब तक ,
जब टक दृष्टि नहीं थकती।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava
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