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Sunday, June 10, 2018

‘प्रकृति’ कविता संग्रह से -17

A poem of Umesh Chandra Srivastava


उसके भाव सरल होते हैं ,
स्मृतियाँ भी समतल हैं।
कहाँ हवा में उड़ आता वह ,
भावों का अटखेलक वह।

उसे भाव में बहने दो सखि ,
वह भावों का कुशल चितेरक।
किस्सा-विस्सा बुनने दो बस ,
कहने दो 'औ' लिखने दो।

उसकी दृष्टि अनोखी अद्भुत ,
बहुत सी बातें कह-सुनता।
जो भी हम जाने 'औ' समझें ,
उससे पूर्व वह लिख देता।

सुंदरता की दृष्टि प्रबल है ,
सुंदरता की वह प्रतिमूर्ति।
क्यों न हो ऐसा वह प्यारे ,
वह हम दोनों की संतति है। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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