A poem of Umesh chandra srivastava
नहीं संतुलित रख पता।
वह तो प्रकृति तुम्हारे जैसा ,
पल-पल हमे सताता है।
जल प्रपात हो , झंझा चाहे ,
सब तो मैं ही शती हूँ।
याद करो प्रकृति , प्रलय का ,
भीषण गहराया पल था।
सभी जीव-जंतु नष्ट हुए थे ,
तब भी मैं संतुलित रही।
पर क्या उर्बी वह भोला तो ,
जीवन में पाना चाहता।
शॉर्टकट में सबकुछ चाहिए ,
इसीलिए वह ठग जाता।
उसमें नारी प्रेम है इतना ,
नारी के प्रति असीम लगाव।
इसी के चलते निज भावों को ,
वह तो प्रकृति तुम्हारे जैसा ,
पल-पल हमे सताता है।
जल प्रपात हो , झंझा चाहे ,
सब तो मैं ही शती हूँ।
याद करो प्रकृति , प्रलय का ,
भीषण गहराया पल था।
सभी जीव-जंतु नष्ट हुए थे ,
तब भी मैं संतुलित रही।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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