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Tuesday, June 26, 2018

‘प्रकृति’ कविता संग्रह से -19

A poem of Umesh chandra srivastava


पर क्या उर्बी वह भोला तो ,
जीवन में पाना चाहता। 
शॉर्टकट में सबकुछ चाहिए ,
इसीलिए वह ठग जाता। 

उसमें नारी प्रेम है इतना ,
नारी के प्रति असीम लगाव। 
इसी के चलते निज भावों को  ,
नहीं संतुलित रख पता।

वह तो प्रकृति तुम्हारे जैसा ,
पल-पल हमे सताता है।
जल प्रपात हो , झंझा चाहे ,
सब तो मैं ही शती हूँ।

याद करो प्रकृति , प्रलय का ,
भीषण गहराया पल था।
सभी जीव-जंतु नष्ट हुए थे ,
तब भी मैं संतुलित रही।





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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