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Friday, June 1, 2018

‘प्रकृति’ कविता संग्रह से -13


A Poem of Umesh chandra srivastava 


कौन पुरुष है , कौन है नारी ,
यह सब भाव जगत का भेद। 
पूरी संतति हम दोनों की ,
हम दोनों उत्सर्जक हैं। 

भाव तुम्हारा सुखद , सलोना ,
उर्बी तू ममता की छाँव। 
तेरे बिन जग लोग अधूरे ,
माता का वर्चस्व बड़ा। 

मात तुम्हीं हो इस जग भर की ,
मल , मूत्र सब कूड़ा करकट। 
हुए समेटे निज बाहों में ,
फिर भी है पुचकार वही। 

धन्य तुम्हारा मात समर्पण ,
जग भर का सब कुछ है अर्पण। 
फिर भी शब्द नहीं हैं तेरा ,
कैसे-कितना वर्णन कर दूं। 



उमेश चन्द्र श्रीवास्तव-
  A Poem of Umesh chandra srivastava 

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