कौन पुरुष है , कौन
है नारी ,
यह सब भाव जगत का
भेद।
पूरी संतति हम दोनों
की ,
हम दोनों उत्सर्जक
हैं।
भाव तुम्हारा सुखद ,
सलोना ,
उर्बी तू ममता की
छाँव।
तेरे बिन जग लोग
अधूरे ,
माता का वर्चस्व बड़ा।
मात तुम्हीं हो इस
जग भर की ,
मल , मूत्र सब कूड़ा
करकट।
हुए समेटे निज बाहों
में ,
फिर भी है पुचकार वही।
धन्य तुम्हारा मात
समर्पण ,
जग भर का सब कुछ है
अर्पण।
फिर भी शब्द नहीं
हैं तेरा ,
कैसे-कितना वर्णन कर
दूं।
उमेश चन्द्र
श्रीवास्तव-
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