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Wednesday, June 6, 2018

‘प्रकृति’ कविता संग्रह से -15

A poem of Umesh chandra srivastava


उसको क्या-क्या बात कहूँ मैं ,
जिसने तेरा सृजन किया।
जीवन का अनमोल रहस्य तू ,
सदा-सदा तू तरुणी लगती।

बहुत हो गया मेरा वर्णन ,
तुमसे प्यारे ही हम हैं।
गर तुम रहे तभी तो-
मेरा जीवन-जीवन है।

तुमसे ही तो हरियाली है ,
तुमसे ही खिलना मेरा।
बिन तेरे हम कुछ भी नहीं हैं ,
तुमसे ही होना मेरा।

तेरा अर्पण , तेरा समर्पण  ,
जबसे हम तुम बने हुए।
मैं तुझमें हूँ , तू मुझमे है ,
प्यारे हम दो एक ही हैं।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव  -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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