A poem of Umesh chandra srivastava
उसको क्या-क्या बात कहूँ मैं ,
जिसने तेरा सृजन किया।
जीवन का अनमोल रहस्य तू ,
सदा-सदा तू तरुणी लगती।
बहुत हो गया मेरा वर्णन ,
तुमसे प्यारे ही हम हैं।
गर तुम रहे तभी तो-
मेरा जीवन-जीवन है।
तुमसे ही तो हरियाली है ,
तुमसे ही खिलना मेरा।
बिन तेरे हम कुछ भी नहीं हैं ,
तुमसे ही होना मेरा।
तेरा अर्पण , तेरा समर्पण ,
जबसे हम तुम बने हुए।
मैं तुझमें हूँ , तू मुझमे है ,
प्यारे हम दो एक ही हैं।
उसको क्या-क्या बात कहूँ मैं ,
जिसने तेरा सृजन किया।
जीवन का अनमोल रहस्य तू ,
सदा-सदा तू तरुणी लगती।
बहुत हो गया मेरा वर्णन ,
तुमसे प्यारे ही हम हैं।
गर तुम रहे तभी तो-
मेरा जीवन-जीवन है।
तुमसे ही तो हरियाली है ,
तुमसे ही खिलना मेरा।
बिन तेरे हम कुछ भी नहीं हैं ,
तुमसे ही होना मेरा।
तेरा अर्पण , तेरा समर्पण ,
जबसे हम तुम बने हुए।
मैं तुझमें हूँ , तू मुझमे है ,
प्यारे हम दो एक ही हैं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
A poem of Umesh chandra srivastava
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