A poem of Umesh chandra srivastava
राम चरित मानस का ,
पाठ करते-करते ,
अचानक , तुलसी बाबा की ओर ,
ऊँगली उठ गयी।
आखिर तुलसी बाबा ने ,
क्यों नहीं रत्नावली के प्रति ,
अपने धर्म का पालन किया ,
जबकि उनके आराध्य राम ,
हरण की गयी सीता के प्रति ,
पूरी तरह पति धर्म का ,
निर्वहन किया।
तमाम धर्मशात्र ,
कर्मशास्त्र का पाठ कराने वाले ,
तुलसी बाबा ने ,
क्यों नहीं अमल किया ,
उन बातों को।
क्या यहां भी ,
वही उक्ति ,
चरितार्थ होगी ,
' बहु उपदेश कुशल बहुतेरे। '
राम चरित मानस का ,
पाठ करते-करते ,
अचानक , तुलसी बाबा की ओर ,
ऊँगली उठ गयी।
आखिर तुलसी बाबा ने ,
क्यों नहीं रत्नावली के प्रति ,
अपने धर्म का पालन किया ,
जबकि उनके आराध्य राम ,
हरण की गयी सीता के प्रति ,
पूरी तरह पति धर्म का ,
निर्वहन किया।
तमाम धर्मशात्र ,
कर्मशास्त्र का पाठ कराने वाले ,
तुलसी बाबा ने ,
क्यों नहीं अमल किया ,
उन बातों को।
क्या यहां भी ,
वही उक्ति ,
चरितार्थ होगी ,
' बहु उपदेश कुशल बहुतेरे। '
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava