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Tuesday, September 11, 2018

स्त्री

A poem of Umesh chandra srivastava


हर स्त्री
क्यों महसूस करती है
बादलों का बोझ।
क्यों यह मान चलती है
कि हम उसी के सहारे
उसी के लिहाफ पर
चल सकते हैं
और पा सकते हैं मुकाम।
खुद को क्यों नहीं संवारती
सूरज को छूने के लिए।








उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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