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Sunday, September 16, 2018

कम्बख्त नदी

A poem of  Umesh chandra srivastava


कम्बख्त नदी
इस नदी को जब देखता हूँ
तो उबल जाता हूँ।
बीते बरस
किसानों को
लील गयी थी यह नदी।
रोष से भर जाता हूँ
आवेशित हो जाता हूँ
कि जब-जब आता हूँ
इस नदी के दुआरे।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of  Umesh chandra srivastava 










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