A poem of Umesh chandra srivastava
कम्बख्त नदी
इस नदी को जब देखता हूँ
तो उबल जाता हूँ।
बीते बरस
किसानों को
लील गयी थी यह नदी।
रोष से भर जाता हूँ
आवेशित हो जाता हूँ
कि जब-जब आता हूँ
इस नदी के दुआरे।
कम्बख्त नदी
इस नदी को जब देखता हूँ
तो उबल जाता हूँ।
बीते बरस
किसानों को
लील गयी थी यह नदी।
रोष से भर जाता हूँ
आवेशित हो जाता हूँ
कि जब-जब आता हूँ
इस नदी के दुआरे।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment