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Wednesday, September 5, 2018

ये नज़ारे ,ये जमुन का तट यह ,

A poem of Umesh chandra srivastava


ये नज़ारे ,ये जमुन का तट यह , 
यहाँ हैं फूल-सैकड़ों भौरे।
नज़र बचा के प्यार को आतुर ,
कहें इन्हें क्या - ये  कंवारे सब हैं।
करते हैं प्यार-ये हुजूम में भी ,
इनका तो प्यार देहं तक समझो।
यह जो चल रहा है दौर ,कम्बख्त बहुत ,
माँ-बाप का फिक्र कहाँ-सारे  बिन्दास हुए।
या खुदा-तुम ही करो कोई जतन ,
ये सारे कंवारे तो अब बर्बाद हुए।









उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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