A poem of Umesh chandra srivastava
ये नज़ारे ,ये जमुन का तट यह ,
यहाँ हैं फूल-सैकड़ों भौरे।
नज़र बचा के प्यार को आतुर ,
कहें इन्हें क्या - ये कंवारे सब हैं।
करते हैं प्यार-ये हुजूम में भी ,
इनका तो प्यार देहं तक समझो।
यह जो चल रहा है दौर ,कम्बख्त बहुत ,
माँ-बाप का फिक्र कहाँ-सारे बिन्दास हुए।
या खुदा-तुम ही करो कोई जतन ,
ये सारे कंवारे तो अब बर्बाद हुए।
ये नज़ारे ,ये जमुन का तट यह ,
यहाँ हैं फूल-सैकड़ों भौरे।
नज़र बचा के प्यार को आतुर ,
कहें इन्हें क्या - ये कंवारे सब हैं।
करते हैं प्यार-ये हुजूम में भी ,
इनका तो प्यार देहं तक समझो।
यह जो चल रहा है दौर ,कम्बख्त बहुत ,
माँ-बाप का फिक्र कहाँ-सारे बिन्दास हुए।
या खुदा-तुम ही करो कोई जतन ,
ये सारे कंवारे तो अब बर्बाद हुए।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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