A poem of Umesh chandra srivastava
सोहै मुरली की तान सुहानी ,
बड़ा नीक लागै देवरानी।
छोट-छोट बहियाँ ले ,
नान्ह-नान्ह पउंवां ,
ठुमुक चलें 'औ' यशोदा लजानी।
बड़ा नीक लागै देवरानी।
धाए-धाए भागे ,
'औ ' धाए-धाए लुकाये ,
ढूँढत-फिरत , माँ हैरानी।
बड़ा नीक लागै देवरानी।
दंतुल दीखै , बदन छहराए ,
उसपे मोर मुकुट हरषानी ,
बड़ा नीक लागै देवरानी।
माखन खाये ,दही बिखराये ,
सारी गोपन को खूब चिढ़ाए ,
उसपे गोप खिसियानी।
बड़ा नीक लागै देवरानी।
सोहै मुरली की तान सुहानी ,
बड़ा नीक लागै देवरानी।
छोट-छोट बहियाँ ले ,
नान्ह-नान्ह पउंवां ,
ठुमुक चलें 'औ' यशोदा लजानी।
बड़ा नीक लागै देवरानी।
धाए-धाए भागे ,
'औ ' धाए-धाए लुकाये ,
ढूँढत-फिरत , माँ हैरानी।
बड़ा नीक लागै देवरानी।
उसपे मोर मुकुट हरषानी ,
बड़ा नीक लागै देवरानी।
माखन खाये ,दही बिखराये ,
सारी गोपन को खूब चिढ़ाए ,
उसपे गोप खिसियानी।
बड़ा नीक लागै देवरानी।
अंजुरी भर-भर के हाथ नचावै ,
सब गोपन से रार मचावै ,
करैं शिकायत , बड़ी परेशानी ,
बड़ा नीक लागै देवरानी।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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