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Tuesday, September 18, 2018

जीवन पथ पर संघ-संघाती

A poem of Umesh chndra srivastava


जीवन पथ पर संघ-संघाती ,
इनसे ही बारात सजी।
अकुरित जीवन सब सुख देता ,
जब जीवन संग-संग चले।
आरी! मंजू की शीतल छवियाँ ,
तुमसे ही सब राग रंग।
जब भी टूटा इस जीवन में ,
सुरभित तेरी छांव मिली।
कहाँ निराला , बेढंगी मैं ,
ढंग से मुझे बनाया भी।
मैं बौराया , पंछी सरपट ,
तुमने मार्ग दिखाया भी।
तेरा भाव , संग तेरा तो ,
धूप छाँव अंधियारे में।
सदा अडिग सी खड़ी रही तू ,
मेरे मन और द्वारे में।







उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chndra srivastava






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