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Wednesday, September 19, 2018

नहीं चाहिए सम्पति हमको

A poem of Umesh chandra srivastava



नहीं चाहिए सम्पति हमको ,
नहीं चाहिए वह व्यवहार।
जिसमें तेरी चर्चा न हो ,
नहीं चाहिए वह इतवार।

ढूंढन में सब नयन झरोखे ,
अंग-वंग  विगलित रहते।
वही संग मैं ढूँढू कब से ,
जिसमें तेरा हो आकार।

बन , उपवन , पर्वत , जंगल हो ,
नदी-नार , पोखर , गड्ढे।
धरा , गगन , दरख्त तले तुम ,
रहती हो एकदम निर्विकार।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava  

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