A poem of Umesh chandra srivastava
नहीं चाहिए सम्पति हमको ,
नहीं चाहिए वह व्यवहार।
जिसमें तेरी चर्चा न हो ,
नहीं चाहिए वह इतवार।
ढूंढन में सब नयन झरोखे ,
अंग-वंग विगलित रहते।
वही संग मैं ढूँढू कब से ,
जिसमें तेरा हो आकार।
बन , उपवन , पर्वत , जंगल हो ,
नदी-नार , पोखर , गड्ढे।
धरा , गगन , दरख्त तले तुम ,
रहती हो एकदम निर्विकार।
नहीं चाहिए सम्पति हमको ,
नहीं चाहिए वह व्यवहार।
जिसमें तेरी चर्चा न हो ,
नहीं चाहिए वह इतवार।
ढूंढन में सब नयन झरोखे ,
अंग-वंग विगलित रहते।
वही संग मैं ढूँढू कब से ,
जिसमें तेरा हो आकार।
बन , उपवन , पर्वत , जंगल हो ,
नदी-नार , पोखर , गड्ढे।
धरा , गगन , दरख्त तले तुम ,
रहती हो एकदम निर्विकार।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava
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