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Friday, September 7, 2018

नदी

A poem of Umesh chandra srivastava

नदी -१ 

नदी का बहना
तुम्हारे में
भाता है
अच्छा लगता है
लेकिन तुम बताओ
कितना थहाह पाई हो
अपने को।
नदी जैसी
गहराई की तरह।
बेसबब नदी बनने का ढोंग  
क्यों रचती हो।
नदी तो प्रवाह है।
नदी तो अथाह है।
और नदी तो नदी है।

नदी -२ 

तुम्हारे क़रीब से 
जब कोई नदी गुज़रती है 
तो क्या महसूस करती हो ?
नदी का बगल से 
गुज़र जाना 
कोई मज़ाक है क्या ?
यूँ ही महसूस कर लेती हो 
नदी का बगल से 
गुज़र जाना ! 
क्या समझती हो 
नदी को ?
नदी-एक नाद है। 
प्रेम-शांती और सबरस का प्रतीक है। 
तुममे है वह सब ! 
है क्या वह सब !!  






 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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