A poem of Umesh chandra srivastava
तुम कहो तो चाँद पर ,
चलके जलाऊँ प्रेम दीपक।
तुम कहो तो इस धरा को ,
आसमां में ढाल दूँ मैं।
तुम कहो तो ज्वार-भाटा को ,
सहज आकार दे दूँ।
तुम कहो तो मनुज जन का ,
मैं सभी संताप हर लूं।
तुम कहो तो कृष्ण सा ,
अनुराग पूरे जग फैलाऊं।
तुम कहो तो आग को,
पानी बना के लय में लाऊँ।
तुम कहो तो द्वेष-ईर्ष्या का ,
सभी मैं पाट भर दूँ।
तुम कहो तो इस जगत को ,
शांतमय एकदम बना दूँ।
तुम कहो तो चाँद पर ,
चलके जलाऊँ प्रेम दीपक।
तुम कहो तो चाँद पर ,
चलके जलाऊँ प्रेम दीपक।
तुम कहो तो इस धरा को ,
आसमां में ढाल दूँ मैं।
तुम कहो तो ज्वार-भाटा को ,
सहज आकार दे दूँ।
तुम कहो तो मनुज जन का ,
मैं सभी संताप हर लूं।
तुम कहो तो कृष्ण सा ,
अनुराग पूरे जग फैलाऊं।
तुम कहो तो आग को,
पानी बना के लय में लाऊँ।
तुम कहो तो द्वेष-ईर्ष्या का ,
सभी मैं पाट भर दूँ।
तुम कहो तो इस जगत को ,
शांतमय एकदम बना दूँ।
तुम कहो तो चाँद पर ,
चलके जलाऊँ प्रेम दीपक।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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