month vise
Tuesday, April 30, 2019
Wednesday, April 17, 2019
एक बंद
A poem of Umesh chandra srivastava
कितने सूंदर नैन तुम्हारे ,कितनी सुन्दर बातें हैं।
एकदम फूल कमल दल लगते , कितनी सुन्दर दाते हैं।
मुखड़ा चंद्र मलय सा लगता , पपवणता की मूरत तुम।
मन करता बीएस तुम्हें निहारुं , कितनी सुन्दर साँसे हैं।
कितने सूंदर नैन तुम्हारे ,कितनी सुन्दर बातें हैं।
एकदम फूल कमल दल लगते , कितनी सुन्दर दाते हैं।
मुखड़ा चंद्र मलय सा लगता , पपवणता की मूरत तुम।
मन करता बीएस तुम्हें निहारुं , कितनी सुन्दर साँसे हैं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
Tuesday, April 16, 2019
इतना जियादा है
A poem of Umesh chandra srivastava
समझ लो प्रेम तुमसे इस कदर ,
इतना जियादा है।
बदन का सारा पानी अब ,
समझ लो आधा-आधा है।
रुधिर सब सूख जाते ,
बदन में सरसराहट है।
तुम्हारे आने से समझो ,
मोहब्बत फरफराहट है।
नज़र के फेर से दुनिया,
समझ लो बदल जाती है।
तुम्हारे देह की जुम्बिश ,
समझ लो कसक जाती है।
बहुत चाहा कि हम तुम,
साथ में थोड़ा कदम चल लें।
मगर ये दुनिया वाले तो,
यहाँ इलज़ाम देते हैं।
समझ लो प्रेम तुमसे इस कदर ,
इतना जियादा है।
बदन का सारा पानी अब ,
समझ लो आधा-आधा है।
रुधिर सब सूख जाते ,
बदन में सरसराहट है।
तुम्हारे आने से समझो ,
मोहब्बत फरफराहट है।
नज़र के फेर से दुनिया,
समझ लो बदल जाती है।
तुम्हारे देह की जुम्बिश ,
समझ लो कसक जाती है।
बहुत चाहा कि हम तुम,
साथ में थोड़ा कदम चल लें।
मगर ये दुनिया वाले तो,
यहाँ इलज़ाम देते हैं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
Thursday, April 11, 2019
कालरात्रि
A poem of Umesh chandra srivastava
माँ काली के आराधन से ,
जनम, मरण पोषण मिलता।
शक्ति स्वरूपा हे माँ काली ,
तेरा वंदन अभिनंदन।
तेरी कृपा से सृष्टि चलती,
सब जान का आँचल भरती।
तू ही एक सहारा माँ है ,
तेरा जग गुणगान करे।
शिव की प्यारी, शिव की दुलारी,
काली नाम अमर हुआ।
तेरे चरणों में माँ वंदन ,
रोली, ऐपन, चन्दन है।
तेरा ही गुण नित मैं गाउँ,
ऐसा माँ दे दो वरदान।
भक्त तुम्हारा चरणों में है,
मद और मोह को दूर करो।
माँ काली के आराधन से ,
जनम, मरण पोषण मिलता।
शक्ति स्वरूपा हे माँ काली ,
तेरा वंदन अभिनंदन।
तेरी कृपा से सृष्टि चलती,
सब जान का आँचल भरती।
तू ही एक सहारा माँ है ,
तेरा जग गुणगान करे।
शिव की प्यारी, शिव की दुलारी,
काली नाम अमर हुआ।
तेरे चरणों में माँ वंदन ,
रोली, ऐपन, चन्दन है।
तेरा ही गुण नित मैं गाउँ,
ऐसा माँ दे दो वरदान।
भक्त तुम्हारा चरणों में है,
मद और मोह को दूर करो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava
Wednesday, April 10, 2019
कात्यायनी माँ तुझे प्रणाम
A poem of Umesh chandra srivastava
माँ का रूप निराला जग में,
कात्यायनी माँ तुझे प्रणाम।
कात्यायन ऋषि के खातिर,
सुता बनी उनकी माँ तुम।
कुल भी उनका माना तुमने,
गोत्र को भी स्वीकार किया।
तेरा प्रेम है अविरल माता,
तू जग की कल्याणी माँ।
आज रात में तप होता है,
आज जागरण सब करते।
रूप राशि की खान है माता,
माता तुमको कोटि प्रणाम।
माँ का रूप निराला जग में,
कात्यायनी माँ तुझे प्रणाम।
कात्यायन ऋषि के खातिर,
सुता बनी उनकी माँ तुम।
कुल भी उनका माना तुमने,
गोत्र को भी स्वीकार किया।
तेरा प्रेम है अविरल माता,
तू जग की कल्याणी माँ।
आज रात में तप होता है,
आज जागरण सब करते।
रूप राशि की खान है माता,
माता तुमको कोटि प्रणाम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
Tuesday, April 9, 2019
स्कंदमाता
A poem of Umesh chandra srivastava
नारी शक्ति, मातृ शक्ति,
स्कंदकुमार की माता तुम।
तेरा अविरल गान करे हम,
गणपति तेरे मानस सुत।
तरकासुर से मुक्त कराया,
जननि तुमको कोटि प्रणाम।
पूजा-ऐपन की थाली ले,
माँ तेरे हम धाम गए।
श्रद्धा से भक्ति से माता,
तेरा ही गुणगान करें।
जग की धात्री हे माँ तुमको,
नमन-नमन है सुबहो शाम।
स्कंदकुमार की माता तुम।
तेरा अविरल गान करे हम,
गणपति तेरे मानस सुत।
तरकासुर से मुक्त कराया,
जननि तुमको कोटि प्रणाम।
पूजा-ऐपन की थाली ले,
माँ तेरे हम धाम गए।
श्रद्धा से भक्ति से माता,
तेरा ही गुणगान करें।
जग की धात्री हे माँ तुमको,
नमन-नमन है सुबहो शाम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
कुष्मांडा माँ तेरा अर्चन
A poem of Umesh chandra srivastava
माँ देवी का आराधन है ,
प्रकृति, पर्यावरण की अधिष्ठात्री |
कुष्मांडा माँ तेरा अर्चन ,
करता हूँ कर जोड़ सही |
तू ही माँ सृष्टि विस्तारक ,
तेरा तेज है सूर्य सामान |
जग के हर नारी-नर का ,
माँ अब कर दे तू कल्याण |
जप 'औ' ध्यान तुम्हीं से हे माँ ,
धरती को पल्लवित करती |
तृप्ति, तुष्टि दोनों तुमसे ,
माँ तुमको है कोटि प्रणाम |
माँ देवी का आराधन है ,
प्रकृति, पर्यावरण की अधिष्ठात्री |
कुष्मांडा माँ तेरा अर्चन ,
करता हूँ कर जोड़ सही |
तू ही माँ सृष्टि विस्तारक ,
तेरा तेज है सूर्य सामान |
जग के हर नारी-नर का ,
माँ अब कर दे तू कल्याण |
जप 'औ' ध्यान तुम्हीं से हे माँ ,
धरती को पल्लवित करती |
तृप्ति, तुष्टि दोनों तुमसे ,
माँ तुमको है कोटि प्रणाम |
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
तेरा रूप निराला मां है
A poem of Umesh chandra srivastava
तेरा रूप निराला मां है,
शांति, नाद की तू प्रतिरूप।
तेरे चलते सुर जीते थे,
असुर काल के गाल रहे।
आज जो क्रंदन करते रहते,
उनको बुद्धि - विवेक तो दो।
कारापन सब दूर हो उनका,
सत्य मार्ग के पारखी हो।
गाल बजाना, छिटाकशी,
दोनों छोड़ वह लय में रहे।
बातें जो भी वह तो बोले,
उससे जग का वेग बहे।
मां यह विनती कर जोड़े हैं,
उनमें शांति रस भर दो।
प्रेम प्यार का गीत वह गाये,
ऐसा मां तुम वर दो |
शांति, नाद की तू प्रतिरूप।
तेरे चलते सुर जीते थे,
असुर काल के गाल रहे।
आज जो क्रंदन करते रहते,
उनको बुद्धि - विवेक तो दो।
कारापन सब दूर हो उनका,
सत्य मार्ग के पारखी हो।
गाल बजाना, छिटाकशी,
दोनों छोड़ वह लय में रहे।
बातें जो भी वह तो बोले,
उससे जग का वेग बहे।
मां यह विनती कर जोड़े हैं,
उनमें शांति रस भर दो।
प्रेम प्यार का गीत वह गाये,
ऐसा मां तुम वर दो |
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
Sunday, April 7, 2019
ब्रह्मचारिणी हे माँ तुमको
A poem of Umesh chandra srivastava
ब्रह्मचारिणी हे माँ तुमको,
कोटि-कोटि है सहस्र प्रणाम।
ब्रह्मा सुता माँ श्रिष्टिकरिणी,
तुझसे ही जग का निर्माण।
तेरी दृष्टि सदा हो हम पर,
वृष्टि तेरी बनी रहे।
जगत धरणी, तू कल्याणी,
तेरा आराधन प्रतिपल।
लोक दृष्टि पर कृपा करो माँ,
वचन धर्म से विरत हुये।
एकसूत्र में पिरो-पिरो कर,
सब जन में समदृष्टि दो।
माँ तुम, माँ तुम यह वर दो।
ब्रह्मचारिणी हे माँ तुमको,
कोटि-कोटि है सहस्र प्रणाम।
ब्रह्मा सुता माँ श्रिष्टिकरिणी,
तुझसे ही जग का निर्माण।
तेरी दृष्टि सदा हो हम पर,
वृष्टि तेरी बनी रहे।
जगत धरणी, तू कल्याणी,
तेरा आराधन प्रतिपल।
लोक दृष्टि पर कृपा करो माँ,
वचन धर्म से विरत हुये।
एकसूत्र में पिरो-पिरो कर,
सब जन में समदृष्टि दो।
माँ तुम, माँ तुम यह वर दो।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
Saturday, April 6, 2019
शैल सुता माँ तुम्हें प्रणाम
A poem of Umesh chandra srivastava
माँ के चरणों में है
वंदन,
शैल सुता माँ तुम्हें प्रणाम
|
नमन तुम्हारा हरदम कर लें,
ऐसा माँ दो तुम वरदान |
तेरी महिमा जग भर गाये ,
तू कारा को दूर करे |
मन से कलुषित भाव मिटा के ,
उसमे तू नवरस भर दे |
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava
Subscribe to:
Posts (Atom)
काव्य रस का मैं पुरुष हूँ
A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...
-
A poem of Umesh chandra srivastava प्रकृति तुम्हारा आकर्षण है , युग-युग से सुन्दरतम तुम। जंतु भले यह प्रगट न कर सकें , पर मानव तुमसे...
-
A poem of Umesh chandra srivastava क्या तुम भी भूमी जीवों सी , या कोई हो जंतु की भांति? जंगल , जल और रुधिर कहाँ है , कहाँ तुम्हारे र...