A poem of Umesh chandra srivastava
समझ लो प्रेम तुमसे इस कदर ,
इतना जियादा है।
बदन का सारा पानी अब ,
समझ लो आधा-आधा है।
रुधिर सब सूख जाते ,
बदन में सरसराहट है।
तुम्हारे आने से समझो ,
मोहब्बत फरफराहट है।
नज़र के फेर से दुनिया,
समझ लो बदल जाती है।
तुम्हारे देह की जुम्बिश ,
समझ लो कसक जाती है।
बहुत चाहा कि हम तुम,
साथ में थोड़ा कदम चल लें।
मगर ये दुनिया वाले तो,
यहाँ इलज़ाम देते हैं।
समझ लो प्रेम तुमसे इस कदर ,
इतना जियादा है।
बदन का सारा पानी अब ,
समझ लो आधा-आधा है।
रुधिर सब सूख जाते ,
बदन में सरसराहट है।
तुम्हारे आने से समझो ,
मोहब्बत फरफराहट है।
नज़र के फेर से दुनिया,
समझ लो बदल जाती है।
तुम्हारे देह की जुम्बिश ,
समझ लो कसक जाती है।
बहुत चाहा कि हम तुम,
साथ में थोड़ा कदम चल लें।
मगर ये दुनिया वाले तो,
यहाँ इलज़ाम देते हैं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment