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Tuesday, April 16, 2019

इतना जियादा है

A poem of Umesh chandra srivastava


समझ लो प्रेम तुमसे इस कदर ,
इतना जियादा है।
बदन का सारा पानी अब ,
समझ लो आधा-आधा है।

रुधिर सब सूख जाते ,
बदन में सरसराहट है।
तुम्हारे आने से समझो ,
मोहब्बत फरफराहट है।

नज़र के फेर से दुनिया,
समझ लो बदल जाती है।
तुम्हारे देह की जुम्बिश ,
समझ लो कसक जाती है।

बहुत चाहा कि हम तुम,
साथ में थोड़ा कदम चल लें।
मगर ये दुनिया वाले तो,
यहाँ इलज़ाम देते हैं।






उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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