A poem of Umesh chandra srivastava
तेरा रूप निराला मां है,
शांति, नाद की तू प्रतिरूप।
तेरे चलते सुर जीते थे,
असुर काल के गाल रहे।
आज जो क्रंदन करते रहते,
उनको बुद्धि - विवेक तो दो।
कारापन सब दूर हो उनका,
सत्य मार्ग के पारखी हो।
गाल बजाना, छिटाकशी,
दोनों छोड़ वह लय में रहे।
बातें जो भी वह तो बोले,
उससे जग का वेग बहे।
मां यह विनती कर जोड़े हैं,
उनमें शांति रस भर दो।
प्रेम प्यार का गीत वह गाये,
ऐसा मां तुम वर दो |
शांति, नाद की तू प्रतिरूप।
तेरे चलते सुर जीते थे,
असुर काल के गाल रहे।
आज जो क्रंदन करते रहते,
उनको बुद्धि - विवेक तो दो।
कारापन सब दूर हो उनका,
सत्य मार्ग के पारखी हो।
गाल बजाना, छिटाकशी,
दोनों छोड़ वह लय में रहे।
बातें जो भी वह तो बोले,
उससे जग का वेग बहे।
मां यह विनती कर जोड़े हैं,
उनमें शांति रस भर दो।
प्रेम प्यार का गीत वह गाये,
ऐसा मां तुम वर दो |
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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