A poem of Umesh chandra srivastava
ब्रह्मचारिणी हे माँ तुमको,
कोटि-कोटि है सहस्र प्रणाम।
ब्रह्मा सुता माँ श्रिष्टिकरिणी,
तुझसे ही जग का निर्माण।
तेरी दृष्टि सदा हो हम पर,
वृष्टि तेरी बनी रहे।
जगत धरणी, तू कल्याणी,
तेरा आराधन प्रतिपल।
लोक दृष्टि पर कृपा करो माँ,
वचन धर्म से विरत हुये।
एकसूत्र में पिरो-पिरो कर,
सब जन में समदृष्टि दो।
माँ तुम, माँ तुम यह वर दो।
ब्रह्मचारिणी हे माँ तुमको,
कोटि-कोटि है सहस्र प्रणाम।
ब्रह्मा सुता माँ श्रिष्टिकरिणी,
तुझसे ही जग का निर्माण।
तेरी दृष्टि सदा हो हम पर,
वृष्टि तेरी बनी रहे।
जगत धरणी, तू कल्याणी,
तेरा आराधन प्रतिपल।
लोक दृष्टि पर कृपा करो माँ,
वचन धर्म से विरत हुये।
एकसूत्र में पिरो-पिरो कर,
सब जन में समदृष्टि दो।
माँ तुम, माँ तुम यह वर दो।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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