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Wednesday, July 24, 2019

आज वह भोर सुहानी फिर है

A poem of Umesh chandra srivastava



आज वह भोर सुहानी फिर है ,
आज दामन की कहानी फिर है |
आज रोको नहीं, कसम से तुम ,
आज जीवन में रवानी फिर है |
छोड़ो बैठो-सभी कुछ काम छोड़ो ,
जरा पलकों से निगाहें मोड़ो |
प्रेम मूरत तुम्हारे मुखड़े पर ,
आज गुलशन की निशानी फिर है |
चलो जलपान करले थोडा हम ,
वजन का भार थोडा बढ़ जाए |
प्रेम आलोक में जो टिम-टिम है,
आज उस बात की कहानी फिर है |


उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -

A poem of Umesh chandra srivastava

Tuesday, July 23, 2019

आज फिर तुमको बुलाना चाहता हूँ

A poem of Umesh chandra srivastava




आज फिर तुमको बुलाना चाहता हूँ ,
आज फिर उस दीप की चाहत मुझे |
रोशनाई में नहा कर प्रेम पूरित ,
आज फिर तुमको दिखाना चाह्ता हूँ |
तुम सदा से पास मेरे ही रही हो ,
तुम सदा से साथ मेरे ही रही हो |
प्रेम का वह राग छेड़ो फिर जरा तुम ,
आज मैं उसमें नहाना चाहता हूँ |



उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Monday, July 22, 2019

सावन पावन महीना है

A poem of Umesh chandra srivastava




सावन पावन महीना है ,
इसमें शिव का नगीना है |
भक्तों आओ जरा शिव धाम ,
भोले शंकर बुलाते हैं राम |
शिव की भक्ति है शक्ति अपार ,
श्रद्धा से सब करो नमश्कार |
कितना सुन्दर है लगता धाम ,
साथ बैठी है शक्ति वाम |
        सावन पावन महीना है ,
        इसमें शिव का नगीना है |


उमेश चन्द्र श्रीवास्तव-

A poem of Umesh chandra srivastava

Saturday, July 20, 2019

तुम्हारे आने से ,


A poem of Umesh chandra srivastava

तुम्हारे आने से,
मौसम बदल जाता है |
तुम्हारे मुस्कुराने से ,
फूल खिल जाते है |
तुम्हारे देखने से ,
सूरज लहलहाने लगता है |
तुम्हारा सुखद सहवास ,
शीतलता प्रदान करता है |
बहुत सोचता हूँ ,
कि तुम्हारे पास,
ऐसा कौन सा ,
गुरुत्वाकर्षण है ,
की सब कुछ ,
खिंचा-खिंचा लगता है |



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

A poem of Umesh chandra srivastava




Thursday, July 18, 2019

अभी तो बहुत काम है


A poem of Umesh chandra srivastava



अभी तो बहुत काम है ,
यहाँ-कहाँ आराम है|
वह तो फिकर में रह रहे ,
खुद वह बढे , खुद को गढे। 
मेरा तो बस मिजाज है ,
वह ही बढे , वह ही चढे। 

इस ज़िन्दगी के मायने ,
समझो कहाँ विराम है। 
अभी तो बहुत काम है ,
यहाँ कहाँ आराम है। 


उमेश चन्द्र श्रीवास्तव-

Thursday, July 11, 2019

चंदा नहीं मोबाइल चाहिए

A poem of Umesh chandra srivastava




चंदा नहीं मोबाइल चाहिए ,
नन्हा बच्चा बोल रहा है।
पापा मुझको तुरंत दिलाओ,
भाव को अपने खोल रहा है।

मोबाइल में दुनिया भर की ,
खुब तस्वीरें देखूंगा।
मम्मी-पापा सुनलो मेरी ,
मैं भी उसमे फेकूंगा।

देख रहा हूँ रोज तमाशा ,
खिल-बिल सारे मिलते हैं।
एक दूजे को कमेंट लिख रहे ,
सामने कुछ नहीं कहते हैं।

मौन सिखाता यह मोबाईल ,
इसकी दुनिया न्यारी है।
बच्चे बूढ़े सभी जनों को ,
इसकी भाती क्यारी है।





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Thursday, July 4, 2019

वह लिखते छंद शास्त्र से,

A poem of Umesh chandra srivastava


वह लिखते छंद शास्त्र से,
परिभाषित करके पढ़ते |
हम तो लिखते जग की बाते,
लोगो को केवल गढ़ते |
वह तो शास्त्र पुरोहित ठहरे,
शास्त्रों के विद्वान प्रबल|
अपनी बातो में रंग भरते ,
दूजे को केवल कहते |



उमेश चन्द्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra srivastava 

निपट अनाड़ी तुम भी सुन लो

A poem of Umesh chandra srivastava



निपट अनाड़ी तुम भी सुन लो
कविता राग विराग सही
भावो का अवगुंठन सारा
यह केवल संवाद नही
अरे जरा कबिरा को देखो
लिखा सहा उस युग का सब
अब तो बानगी पेश कर रहे
उसमे रहना कुछ भी नही ...





उमेश श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...