A poem of Umesh chandra srivastava
चंदा नहीं मोबाइल चाहिए ,
नन्हा बच्चा बोल रहा है।
पापा मुझको तुरंत दिलाओ,
भाव को अपने खोल रहा है।
मोबाइल में दुनिया भर की ,
खुब तस्वीरें देखूंगा।
मम्मी-पापा सुनलो मेरी ,
मैं भी उसमे फेकूंगा।
देख रहा हूँ रोज तमाशा ,
खिल-बिल सारे मिलते हैं।
एक दूजे को कमेंट लिख रहे ,
सामने कुछ नहीं कहते हैं।
मौन सिखाता यह मोबाईल ,
इसकी दुनिया न्यारी है।
बच्चे बूढ़े सभी जनों को ,
इसकी भाती क्यारी है।
चंदा नहीं मोबाइल चाहिए ,
नन्हा बच्चा बोल रहा है।
पापा मुझको तुरंत दिलाओ,
भाव को अपने खोल रहा है।
मोबाइल में दुनिया भर की ,
खुब तस्वीरें देखूंगा।
मम्मी-पापा सुनलो मेरी ,
मैं भी उसमे फेकूंगा।
देख रहा हूँ रोज तमाशा ,
खिल-बिल सारे मिलते हैं।
एक दूजे को कमेंट लिख रहे ,
सामने कुछ नहीं कहते हैं।
मौन सिखाता यह मोबाईल ,
इसकी दुनिया न्यारी है।
बच्चे बूढ़े सभी जनों को ,
इसकी भाती क्यारी है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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