month vise

Thursday, July 11, 2019

चंदा नहीं मोबाइल चाहिए

A poem of Umesh chandra srivastava




चंदा नहीं मोबाइल चाहिए ,
नन्हा बच्चा बोल रहा है।
पापा मुझको तुरंत दिलाओ,
भाव को अपने खोल रहा है।

मोबाइल में दुनिया भर की ,
खुब तस्वीरें देखूंगा।
मम्मी-पापा सुनलो मेरी ,
मैं भी उसमे फेकूंगा।

देख रहा हूँ रोज तमाशा ,
खिल-बिल सारे मिलते हैं।
एक दूजे को कमेंट लिख रहे ,
सामने कुछ नहीं कहते हैं।

मौन सिखाता यह मोबाईल ,
इसकी दुनिया न्यारी है।
बच्चे बूढ़े सभी जनों को ,
इसकी भाती क्यारी है।





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...