A poem of Umesh chandra srivastava
आज फिर तुमको बुलाना
चाहता हूँ ,
आज फिर उस दीप की
चाहत मुझे |
रोशनाई में नहा कर
प्रेम पूरित ,
आज फिर तुमको दिखाना
चाह्ता हूँ |
तुम सदा से पास मेरे
ही रही हो ,
तुम सदा से साथ मेरे
ही रही हो |
प्रेम का वह राग
छेड़ो फिर जरा तुम ,
आज मैं उसमें नहाना
चाहता हूँ |
उमेश चन्द्र
श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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