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Sunday, December 10, 2017

पत्थर

poem of Umesh chandra srivastava

एक पत्थर सलीके से उछालो ,
आसमान साफ है।
कई समाधान हैं।
पर सलीके से -
पत्थर उछालना ,
देख-दाख के।
कहीं उछाला हुआ पत्थर ,
तुम्हें खुद ही ,
चोटिल न कर दे।
पत्थर है भाई।
संवेदनहीन है ,
ऐसा कह सकते हो।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 
poem of Umesh chandra srivastava

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