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Friday, December 15, 2017

तो फिर क्या डरना



उनका कुछ भी कह देना ,
मज़ाक है क्या ?
लोकतंत्र के चौपहिये ,
कब- तक ,
बाजारवाद में रमोगे। 
कब-तक -
मालिकान के हुक्मों की ,
तामील करोगे। 
पेट की खातिर ,
रोटी के लिए ,
कब-तक मरोगे। 
जीवन की सच्चाई है मरना ,
तो फिर क्या डरना। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -


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