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Monday, December 11, 2017

स्मृति

poem of Umesh chandra srivastava 

क्यों मन प्रदीप्त के भीतर ,
वह भोली-भली सूरत ,
बनती है और बिगड़ती ,
वह भोली-भली कीरत। 

आंसूं आँखों से छलके ,
कुछ याद सखी की आयी ,
कुछ स्मृति सी मुस्काई ,
कुछ पल हर्षित से उलझे।    (फिर कभी... )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem of Umesh chandra srivastava 

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